3 साल के मासूम की जान बचाने वाले चिकित्सक बधाई के पात्र : निदेशक डॉ.एस.के. सिंघल

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एकता में बहुत बडा बल होता है और हम एक साथ मिलकर कोई कार्य करते हैं तो निश्चित रूप से हमारी जीत होती है, चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो। पीजीआईएमएस के करीब आधा दर्जन विभागों ने आज यह दिखा दिया कि एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करने से वें मरीज को मौत से मुंह से बाहर निकाल सकते हैं। यह कहना है पोस्ट ग्रेजुएट इंस्ट्यिट ऑफ मेडिकल सांईसिंज के निदेशक डॉ.एस.के. सिंघल का।

डॉ. एस.के. सिंघल ने पीजीआईएमएस में भर्ती तीन साल के मासूम का जीवन बचाने के लिए कार्डियक सर्जरी विभाग, कार्डियक एनेस्थीसिया ,निश्चेतन विभाग, पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर, पीडियाट्रिक मेडिसिन विभाग व फिजियोथेरेपी विभाग के चिकित्सकों की टीम ने मिलकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदान कर इस बच्चे की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि यह टीम वर्क का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और सभी टीम सदस्य बधाई के पात्र हैं।

पंडित भगवत दयाल शर्मा स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.एच.के. अग्रवाल ने कहा कि पीजीआईएमएस रोहतक के कई विभागों की टीम ने अपनी विशेषज्ञता और समर्पण का प्रदर्शन करते हुए इस बच्चे की जान बचाई। डॉ. अग्रवाल ने सभी चिकित्सकों को बधाई देते हुए कहा कि संस्थान का हमेशा प्रयास रहता है कि यहां आने वाले मरीजों को उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाई जाए।

मरीज के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कार्डियक सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ.एस.एस. लोहचब ने बताया कि एक 3 वर्षीय बच्चा 14 मार्च को होली पर छत से लोहे के गेट पर गिरने के बाद श्वास नली में गंभीर चोट के साथ ट्रामा सेंटर में आया था फिर हमारे पास रेफर होकर आया था। इस पर मरीज की जांच की तो पता चला कि दुर्घटना ने बच्चे को श्वासनली में गहरी चोट, व्यापक न्यूमोमेडिएस्टिनम और अन्य जटिलताओं पैदा कर दी थीं, जिससे उसका बचना खतरे में पड़ गया। इस पर उन्होंने अपने विभाग के डॉ. संदीप सिंह, डॉ. पनमेश्वर, डॉ. शशिकांत, निश्चेतन विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस.के. सिंघल, डॉ. कीर्ति कमल खेतरपाल, कार्डियक एनेस्थीसिया से डॉ. गीता व डॉ. इंद्रा मलिक के साथ मरीज का करीब 3 घंटे तक सफल ऑपरेशन करने में कामयाब रहे। डॉ. संदीप सिंह ने बताया कि प्रारंभिक सफलता के बावजूद, बच्चे को शल्य चिकित्सा स्थल पर संक्रमण, न्यूमोथोरैक्स और फेफड़े के पतन सहित कई पोस्टऑपरेटिव चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके लिए छाती में ट्यूब डालने, ब्रोंकोस्कोपी और रिसस्टरिंग जैसे आगे के हस्तक्षेप की आवश्यकता थी। इसमें डॉ. धू्रव व डॉ. पवन ने काफी सहयोग दिया। दो महीने के दौरान, समर्पित चिकित्सा कर्मचारियों की देखभाल में मयंक की हालत में धीरे-धीरे सुधार हुआ। उसके घाव ठीक हो गए और उसकी महत्वपूर्ण शक्ति स्थिर हो गई, जिससे उसे 15 मई, 2025 को छुट्टी मिल गई। डॉक्टरों ने उसे निरंतर स्वस्थ होने के लिए उच्च प्रोटीन आहार, भाप लेने, छाती की फिजियोथेरेपी और अनुवर्ती यात्राओं की सलाह दी। उनके परिवार ने इस महत्वपूर्ण समय के दौरान उनके अटूट समर्थन और विशेषज्ञता के लिए अस्पताल के चिकित्सकों व स्टाफ का हार्दिक आभार व्यक्त किया।

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